महाभारत युग का सबसे शक्तिशाली योद्धा कौन था ? अर्जुन, कर्ण , भीषम , द्रोण , भीम या स्वयं श्री कृष्ण । अपितु इनमे से कोई भी नहीं । बात यहाँ महँ योद्धा की नहीं बल्कि शक्तिशाली योद्धा की है | महाभारत का सबसे शक्तिशाली योद्धा जो इस युद्ध में भाग भी न ले सका, वह था बर्बरीक ।
भीम का पोत व घटोत्कच का बेटा, बर्बरीक से शक्तिशाली औरकोई नहीं, यह बात कृष्ण भलीभांति जानते थे । वो यह भी जानते थे की बर्बरीक जिस पक्ष से युद्ध लड़ेगा उसकी जित निश्चित है ।
पर बर्बरीक ने एक अजब सा निर्णय लिए, - जो भी युद्ध में हर्ता रहेगा वह उस पक्ष का साथ देगा ।
इस अनोखे निर्णय ने श्री कृष्ण को असमंजस में डाल दिया।
इस तरह तो युद्ध का कभी परिणाम ही नहीं आएगा, क्यूंकि बर्बरीक का पक्ष हार नहीं सकता और जैसे ही दूसरा पक्ष हरने लगेगा वह उस पक्ष के तरफ से लड़ने लगेगा, और शीघ्र ही हारती पक्ष जीतते दिखेगी ।
बिना परिणाम के युद्ध से ज्यादा विध्वंसकारी कुछ और नहीं हो सकता । ऐसी परिश्थिति ही ना बने, इस हेतु श्री कृष्ण ने निर्णय लिया बर्बरीक को रोकने की । और उसे रोकने का एक मात्र उपाय था - बर्बरीक की मौत ।
बिना परिणाम के युद्ध से ज्यादा विध्वंसकारी कुछ और नहीं हो सकता । ऐसी परिश्थिति ही ना बने, इस हेतु श्री कृष्ण ने निर्णय लिया बर्बरीक को रोकने की । और उसे रोकने का एक मात्र उपाय था - बर्बरीक की मौत ।
इसी मनसा से श्री कृष्ण गए बर्बरीक के पास दान मांगने , मुंहमांगा दान । वो दान में शीश दान मांगने वाले है, इस बात से बर्बरीक अभिग्न नहीं था , अतः वो दान देने से बचने की कोशिश करने लगा ।
बर्बरीक व श्री कृष्ण में दान के विषय में विमर्श होने लगा |
एक छोटा सा उदाहरण - जब कृष्णा दान के पक्ष में बाते केर रहे थे तो बर्बरीक ने कुछ यु कहा -
दान दुर्लभ मान्शी उत्तेजना है ,
एक पल आवेग की संवेदना है |
दान लेना या की देना स्वार्थ ही है
इस तरफ या उस तरफ सिद्धार्थ ही है ||
बर्बरीक का जीवन और श्री कृष्ण के साथ दान के विषय में हुए आलोकिक वार्तालाप व को कवी नाहर ने कविता के छन्दो में बार बार जीवंत किया है ।
बर्तमान मैं बर्बरीक की पूजा खटु श्याम के नाम से राजस्थान में की जाती है ।
यह महाकाव्य बर्बरीक को समर्पित ।
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