संकल्प - गुरु द्रोण व् शिष्य एकलव्य को समर्पित

महाभारत की कथा दरअसल संकल्पो, वचनो और प्रतिज्ञाओं  की कथा है।    ये कथा शुरु होती है गंगापुत्र देवव्रत की भीष्म प्रतिज्ञा से ,और आगे बढाती है अनेक संकल्पो व् वचनो के साथ  -

राजकुमारी अम्बा का संकल्प, भीष्म को मरने की
शकुनि का संकल्प अपनी बहन गांधारी के पुत्रो को राज्य दिलाने का
धृतराष्ट का अपने पुत्र  को सम्राट बनाने का व्चन
द्रोपती का संकल्प , अपने केश न बांधने का जबतक उसके अपमान का न्याय नहीं होता
भीम का द्रोपती को वचन, न्याय दिलाने का
ऐसे अनेको  उदाहरण है



संकल्प काव्य भी ऐसे ही ७ संकल्पो की कहानी है - 

गुरु द्रोण  का पहला संकल्प द्रुपत से प्रतिशोध  का,  
दूसरा संकल्प  अपने पुत्र अश्वथामा को राजा बनाने  का 
इन दो संकल्पो को पूरा करने के लिए सिर्फ और सिर्फ  राजकुमारों को शिक्षा देने  का संकल्प 
फिर एक और संकल्प  अर्जुन का विश्व का श्रेष्ट धनुर्धर बनाने का 

और शिष्य एकलव्य का संकल्प सिर्फ द्रोण  से ही शिक्षा  लेने का 
और संकल्प  गुरु दक्षिणा का 
संकल्प समपरण का 


अपने इस  काव्य "संकल्प" में कवी  नाहर  ने  शिष्य  एकलव्य को मुख्य  पात्र  चुना , एवं  गुरु व् शिष्य संवाद तथा उनकी मनोस्थिति का अनूठा वर्णन कविता के माध्मान से किया।  पूरी काव्य एक ऐसी दुखित घटना पे आधारित है जिसने  द्वापर युग के एक सक्षम योद्धा को  महान  वक्तित्व को बना डाला , लेकिन एक महान योद्धा बनाने से वंचित कर गया।   


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