चित्रगुप्त चालीसा - कयस्तो का धर्मग्रंथ



परमपिता ब्रम्हा के शरीर से उत्पन भगवान चित्रगुप्त महाराज का कर्मक्षेत्र बना यमपुरी । धर्मराज यम के यहाँ उन्हें जिम्मेदारी मिली सभी प्राणियों के पाप - पुण्य का हिसाब किताब रखने की । उनके वंशज आज भी अपने स्तर पे यह परंपरा निभा रहे है , और मुख्य तौर पे लेखा जोखा में गुणवक्ता के लिए जाने जाते है । लेखनी कटनी के छेत्र में श्रेष्ट वर्ण होने के बावजूद भगवान चित्रगुप्त पर कोई धर्म पुस्तिका नहीं है, यह बड़े आश्चर्य  व असमंजस की बात है ।

इस कमी के भरपाई हेतु, कायस्त कवी श्री नरेश प्रशाद "नाहर" ने चित्रगुप्त पचासा की रचना की । कविं नाहर ने पचास दोहो में भगवन चित्रगुप्त की वंदन तथा वर्णन  बड़े  ही भक्ति व भावपूर्ण ढंग से किया है । यह पाठको को अनुपम आनंद प्रदान करने वाला है । प्रकाशक का सुझाव था की पुस्तक का नाम  चित्रगुप्त चालीसा रखा जाये (अपितु इसमें पचास दोहे है), ताकि जन मानस इस काव्य का उद्देश्य शीर्षक मात्र से ही समझ जाये ।

समस्त कायस्त जाती के लिए यह पचासा किसी धर्मग्रन्थ से कम नहीं है । और इसका वंदन चित्रगुप्त पूजा के दिन अवस्य ही करना चाहिये ।

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