जब सीता का हरण हुआ, तब कुंभकरण सो रहा था | जब श्रीराम ने रावण से युद्ध के पहले समझौते का प्रस्ताव भेजा, तब भी कुम्भकरण सोया हुआ था | जब युद्ध शुरू हुआ, तब भी वो सो रहा था | अब जब युद्ध में रावण हारने को हुआ, तब उसने सोते हुए कुम्भकरण को जगाकर युद्ध जाने का आदेश दे दिया | भ्राता व् भूमि से कर्तव्यबंध, बिना कुछ जाने, बिना किसी कारन, बिना किसी द्वेष या उद्देश्य, कुम्भकरण युद्ध को प्रश्थान कर गया |
कुम्भकरण की पत्नी, व्रज्ज्वाला को पता था, की ये प्रश्थान सिर्फ युद्ध को नहीं है; दरअसल, ये जीवन से प्रश्थान है | वह चाह कर भी कुछ नही कर सकती थी | उसके पास कुछ शेष बचा था, तो वो था अपने जीवन के सबसे दुखद समाचार का इंतजार तथा मन में हजारो लाखो सवाल |इस युद्ध का कारन या उद्देश्य क्या था ? क्यू बेकसूर को भी भोगना पड़ता है युद्ध का परिमाण ? आखिर युद्ध होता ही क्यू है ?
व्रज्ज्वाला के इसी मनोदशा व् प्रश्नो पे आधारित, इस महाकाव्य में कवी ने, रामायण के इस अनुपम प्रशंग व् व्रज्ज्वाला के वक्तित्यव को जिवंत किया है | प्रेम, कर्तव्य व् जीवन के अनेखो प्रश्नो से भरे इस महाकाव्य में कवी ने युद्ध के २७ कारणों व् विभिन्य परिणामो को गद्य रचित कर इसे अमर कर दिया है |
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